।। श्रीपाद राजं शरणं
प्रपद्ये।।
अध्याय – ४६
श्रीपाद प्रभु की चरण पादुकाओं पर
समर्पित मंत्राक्षता में वृद्धि, पादुकाएं श्री भास्कर
पंडित को भेंट में
हम भास्कर पंडित से आज्ञा लेकर चलने को तैयार हुए.
भास्कर पंडित कुछ देर ध्यान मग्न रहे. श्रीपाद प्रभु की चरण पादुकाएं भास्कर पंडित
ने अपने पूजा घर में रखी थीं. उन चरण पादुकाओं पर चढ़ाए हुए चावल (अक्षता) बढ़ रहे
थे. यह देखकर हम आश्चर्यचकित रह गए. भास्कर पंडित बोले, “श्रोताओं! श्रीपाद
प्रभु की लीलाएँ अगम्य हैं. श्री पद्मावती माता का जन्म नक्षत्र मृग है, एवँ श्री वेंकटेश्वर
प्रभु का जन्म नक्षत्र श्रवण है. उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र पद्मावती माता के लिए
मित्र तारा है, जबकि श्री वेंकटेश स्वामी के लिए वह परम मित्र तारा है, अतः उनका लग्न नक्षत्र
उत्तरा फाल्गुनी है. आज भी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है. इस दिव्य नक्षत्र की बेला
में श्रीपाद प्रभु की चरण पादुकाओं पर समर्पित मंत्राक्षताओं में वृद्धि हुई है.
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि श्रीपाद प्रभु साक्षात श्री पद्मावती एवँ श्री
वेंकटेश स्वरूप ही हैं, यह प्रदर्शित करने के लिए ही उन्होंने यह लीला दिखाई. इनमें
से कुछ मंत्राक्षता आप लोग अपने पास रखो. वे आपके लिए मंगलदायक होंगी एवँ श्री
प्रभु की कृपा सदा आप पर रहेगी.”
शंकर
भट्ट तथा धनगुप्त के साथ देश पर्यटन एवँ विविध क्षेत्रों के दर्शन
हमने यात्रा का संकल्प
करके बैलगाड़ी से यात्रा आरम्भ की. वह बैलगाड़ी एक बरात की थी. इस बरात के वैश्य
प्रमुख घोड़ा गाडी से यात्रा कर रहे थे. वे कोंडविडू गाँव जा रहे थे. वे
वैश्यप्रमुख धनगुप्त बोले, “आज बड़ा शुभ दिन है. आपने बैलगाड़ी से यात्रा करके श्रीपाद प्रभु की मंत्राक्षता
शादी वाले घर में दीं और फिर हमें भी दीं.” वे आगे बोले, “मैं एक बार व्यापार
हेतु पीठिकापुरम् गया था. तब मुझे श्री वेंकटप्पा श्रेष्ठी के घर श्रीपाद प्रभु के
दर्शन हुए. उस समय श्रीपाद प्रभु प्रेम से बोले थे, “तेरे पुत्र के विवाह के अवसर पर मैं आशीर्वाद
स्वरूप मंत्राक्षता भेज दूँगा. जिससे तुझे मंत्राक्षता प्राप्त होगी, उस ब्राह्मण को दो
वराह दक्षिणा के रूप में देना.”
इसके पश्चात हम कोंडविडू गाँव पहुंचे. वहाँ
वैश्य प्रमुख के पुत्र का विवाह बड़े शानदार ढंग से संपन्न हुआ. यहाँ हमारी मुलाक़ात
एक हीरे मोतियों के व्यापारी से हुई. धनगुप्त कुछ दिनों तक कोंडविडू में रुके, परन्तु मैं घोडागाडी
से विजय वाटिका (वर्त्तमान में विजयवाड़ा) क्षेत्र में आया. इस महाक्षेत्र में
कृष्णा नदी है तथा श्री कनक दुर्गा एवँ श्री मल्लेश्वर स्वामी का मंदिर है. कृष्णा
नदी में स्नान करके मैंने भगवान के दर्शन किये. देवी के मंदिर में मुझे एक वृद्ध
सन्यासी मिले. उन्हें कई दिनों से पीठिकापुरम् जाकर श्रीपाद प्रभु के दर्शन करने
की तीव्र इच्छा हो रही थी. विजय वाटिका से निकलकर हम कुछ दिनों में राजमंड्री क्षेत्र
में पहुंचे. वहाँ गोदावरी में स्नान करके श्री मार्कंडेश्वर तथा श्री
कोटिलिंगेश्वर के दर्शन किये. श्रीपाद प्रभु की कृपा से हमारी यात्रा अत्यंत सुखद
हो रही थी. मैंने अपने साथ चल रहे सन्यासी से कहा, “कुछ ही दिनों में हम पीठिकापुरम् पहुँचने वाले
हैं. वहाँ श्रीपाद प्रभु का जन्मस्थान देखेंगे. श्री वेंकटप्पा श्रेष्ठी एवँ श्री
नरसिंह वर्मा से मिलेंगे. श्रीपाद प्रभु के नानाजी श्री बापन्नाचार्युलु से
आशीर्वाद लेंगे. श्रीपाद प्रभु की माता सुमति महाराणी, पिता अप्पलराजू शर्मा से भी
मिलेंगे. तदनंतर हम पीठिकापुरम् से कुरुगड्डी जाकर श्रीपाद प्रभु के दर्शन लेंगे.”
सन्यासी अत्यंत प्रसन्न
हो गया. मार्ग में अनेक मंदिरों के दर्शन करते हुए हम कुछ ही दिनों में
पीठिकापुरम् पहंचे. श्री बापन्नाचार्युलु के घर में हमारी रहने की एवँ खाने-पीने
की व्यवस्था की गई. श्रीपाद प्रभु की अनेक बाल लीलाएँ हमने भक्तजनों के मुख से
सुनीं. श्रीपाद प्रभु की असंख्य लीलाओं का वर्णन करना सहस्त्रमुखों वाले शेषनाग के लिए भी कठिन है, वहाँ मेरे जैसे
य:कश्चित ब्राह्मण की क्या बिसात?
श्रीपाद प्रभु के भक्तों का
कुरुगड्डी को प्रयाण
श्री नरसिंह वर्मा की धर्मपत्नी ने कुरुगड्डी जाकर
श्रीपाद प्रभु के दर्शन करने का संकल्प किया. इस सन्दर्भ में उन्होंने श्री वेंकटप्पय्या
श्रेष्ठी एवँ श्री बापन्नाचार्युलु से चर्चा की. सबने एकमत से कुरुगड्डी जाने का
निश्चय किया. श्रीपाद प्रभु के माता-पिता, सुमति महाराणी तथा अप्पल राजू शर्मा, अपने पुत्र से मिलने
की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे. इन सबने अठारह घोड़ा-गाड़ियों की व्यवस्था
की. एक शुभ दिन सब सामान-असबाब सहित घोड़ा-गाडियों से सुबह-सुबह निकल पड़े. पीठिकापुरम्
से कुरुगड्डी के बीच अंतर काफी होने से यात्रा कई दिनों तक चलने वाली थी. सुमति
महाराणी अपने पुत्र का मुख देखने के लिए उतावली हो रही थीं. पुत्र की याद से माता
की आंखें भर आईं. सबने यह कहकर उनका समाधान किया कि अब वे शीघ्र ही श्रीपाद प्रभु
से मिलने ही तो वाले हैं.
माता-पिता,
नाना-नानी को श्रीपाद प्रभु के पुनः दर्शन
सर्वान्तर्यामी एवँ
माया नाटक सूत्रधारी त्रिकालदर्शी श्रीपाद प्रभु को अपने स्थान पर बैठे-बैठे ही पीठिकापुरम्
से घोड़ा-गाडियों में आ रहे लोग दिखाई दे रहे थे. प्रातःकाल की निकली हुई गाड़ियां
दोपहर के बारह बजे तक चल ही रही थीं. अचानक एक अद्भुत बात हुई. गाडीवानों सहित सभी
को ऐसा लगा मानो वे मूर्छित हो गए हैं. उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ मानो उनकी गाड़ियां
आकाश मार्ग से जा रही हैं. कुछ देर के पश्चात मूर्च्छा टूटने पर देखा कि एक अनजान
प्रदेश में पहुँच गए हैं. गाडी से नीचे उतर कर हम देखने लगे कि वह कौनसा प्रदेश
है. रास्ते से आ रहे एक पथिक से पूछा कि यह कौनसा गाँव है. वह बोला, “महाराज, यह पंचदेव पहाड़ ग्राम है. आज गुरूवार होने के कारण हम श्रीपाद प्रभु के
दर्शनों के लिए गए थे. महाप्रभु ने दर्शनों के लिए आए हुए प्रत्येक भक्त से उसका
कुशल क्षेम पूछा, और उनकी व्याधियां दूर कीं. दर्शनाभिलाषियों के भोजन की व्यवस्था अत्यंत उत्तम
थी.” इतना कहकर वह पथिक अपने मार्ग पर चला गया. हम प्रात:काल पीठिकापुरम् से
घोड़ा-गाडी से निकले थे. इस समय दोपहर के साढ़े बारह बजे थे......इतने कम समय में हम
यहाँ पर कैसे पहुँच गए इसका हमें महान आश्चर्य हो रहा था. हमने नौका से नदी पार
करके कुरुगड्डी ग्राम में प्रवेश किया. यह स्वप्न है या सत्य है, इस बारे में हम भ्रमित
हो गए. परन्तु यह सत्य ही था. हम सब प्रभु के दरबार में गए. सुमति माता ने श्रीपाद
प्रभु को बड़े वात्सल्य से अपने ह्रदय से लगाया. उनके नेत्रों से आनंदाश्रु बह रहे
थे, जो श्रीपाद प्रभु की पीठ पर गिर रहे थे. श्रीपाद प्रभु बोले, “माँ, तुम निर्गुण, निराकार ऐसे परतत्व के पुत्र की माता हो. तुम अनुसूया माता के सामान
पतिव्रता शिरोमणी हो.” इतना कहकर उन्होंने अपने हाथ से माता के अश्रु पोंछे.
।। श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु की जय
जयकार हो।।
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