शनिवार, 13 अगस्त 2022

अध्याय - ५०

 

।। श्रीपाद राजं शरणं प्रपद्ये।। 


अध्याय – ५० 


गुरू निंदा करने से दारिद्र्य प्राप्ति


एक वृद्ध ब्राह्मण पेट दर्द से पीड़ित था. वह श्रीपाद प्रभु के दर्शनों के लिए कुरुगड्डी आया. उसकी पीड़ा इतनी असह्य थी, कि उसे उन वेदनाओं को सहन करने की अपेक्षा आत्महत्या करना अधिक उचित लगता था.

नाम स्मरण महिमा

उस ब्राह्मण ने श्रीपाद प्रभु के दर्शन किये और अत्यंत दीन-हीन स्वर में प्रभु से अपनी पीड़ा दूर करने की विनती की. तब श्रीपाद प्रभु बोले, “अरे, ब्राह्मण! तूने पूर्व जन्म में अपनी कठोर वाणी से अनेक लोगों का दिल दुखाया है. अनेक लोगों को अपने ह्रदय भेदी कठोर शब्दों से घायल किया है. इस कर्म के फलस्वरूप तुझे इस जन्म में यह पेट दर्द की व्याधि लग गई है. इस कलियुग मे वाक् दोष से मुक्त होने का मानव के लिए केवल एक ही मार्ग है, और वह है – “नाम स्मरण”. ईश्वर के नाम स्मरण से वायु मंडल शुद्ध होता है. मैं कुरुगड्डी में नामस्मरण महायज्ञ का आयोजन करने वाला हूँ. इस “नाम” के साथ “श्रीकार” भी जोड़ने वाला हूँ. इसके फलस्वरूप परा, पश्यंती, मध्यमा, एवँ वैखरी – ये चारों वाणियाँ चिरस्थाई रूप से नियंत्रित हो जायेंगी. जो भक्त “दिगंबरा, दिगंबरा, श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा”, तथा “श्री दत्ता दिगंबरा” नाम-स्मरण मनःस्फूर्ति से करेंगे उन्हें मैं अत्यंत सुलभ रूप से प्राप्त होकर उनकी मनोकामना पूर्ण करूंगा.” उस व्याधिग्रस्त ब्राह्मण को श्रीपाद प्रभु ने तीन दिन एवँ तीन रात कुरुगड्डी में रहकर “दिगंबरा, दिगंबरा, श्रीपादवल्लभ दिगंबरा” नाम का जाप करने को कहा. श्री प्रभु के आदेशानुसार वह वृद्ध ब्राह्मण तीन दिन, तीन रात कुरुगड्डी में रहा एवँ उसने अत्यंत श्रद्धाभाव से जाप किया. उसके पेट का दर्द कम हो गया.

श्रीपाद प्रभु बोले, “वायु मंडल में आज भी पहले के ही समान वाक् जल भरा हुआ है. हमारे द्वारा उच्चारित प्रत्येक वाक्य प्रकृति में उपस्थित सत्व, रज, तम इन तीन गुणों से अथवा इनमें से एक अथवा दो गुणों से परिपूर्ण होता है. इस त्रिगुणात्मक सृष्टि का पञ्च महाभूतों पर प्रभाव पड़ता है. ये पञ्च महाभूत जब दूषित होते हैं, तो समूचा अंतरिक्ष दूषित हो जाता है. इसके फल स्वरूप मानव द्वारा पाप कर्म किये जाते हैं और वह दरिद्री हो जाता है. इस दारिद्र्य के कारण उसके हाथ से पुनः पापकर्म हो जाते हैं. इस पापकर्म के फलस्वरूप मन दूषित हो जाता है, उसके द्वारा दान, धर्म, लोक सेवा आदि सत्कर्म नहीं किये जाते, फलस्वरूप वह पुनः दरिद्री हो जाता है. यह दुष्ट चक्र निरंतर चलता रहता है.

 

त्रिकरण शुद्धि की आवश्यकता

मानव को दारिद्र्य एवँ पापकर्म से मुक्ति पाना हो तो उसे काया, वाचा, मनसा शुद्ध होना चाहिए. इसी को त्रिकरण शुद्धि कहते हैं. जो हमारे मन में है, उसी को वाणी प्रकट करे. मन में दुष्ट भाव हों, और वाणी मधुर हो, इस प्रकार का दोगलापन वांछनीय नहीं है. वाणी के ही समान आचरण भी पवित्र होना चाहिए. त्रिकरण शुद्धि प्राप्त मानव महान पद को प्राप्त होता है. मन में एक प्रकार का भाव हो, वाणी कुछ अन्य ही प्रकट करे एवँ इन दोनों से बिलकुल भिन्न आचरण करने वाले को दुरात्मा कहते हैं. इस कलियुग में ईश्वर ने जीवन सागर पार करने के अनेक मार्ग बताए हैं. इनमें सबसे सुलभप्राय साधन है “नाम-स्मरण”. नाम-स्मरण करने वाले साधक की वाणी मधुर होती है, नाम-स्मरण न करने वाले का मन भी अशुद्ध होता है. नाम-स्मरण के फलस्वरूप पवित्र कर्म करने की प्रेरणा प्राप्त होती है.

 

कर्म विमोचन

एक बार क्षय रोग से ग्रस्त एक व्यक्ति कुरवपुर आया. उसे मधुमेह एवँ कुछ अन्य व्याधियां भी थीं. उसे देखते ही श्रीपाद प्रभु अत्यंत क्रोधित हो गए. वह व्यक्ति पूर्व जन्म में एक कुख्यात चोर था. उसने अनेक निरपराध लोगों की संपत्ति लूटकर उन्हें निर्धन बना दिया था.

एक उपवर कन्या के पिता ने उसके विवाह के लिए संपत्ति संचय करके रखी थी. उस दुष्ट चोर ने वह संपत्ति लूट ली,  फलस्वरूप उस कन्या का विवाह न हो सका. वर-दक्षिणा देने के लिए धन के न होने से उसे योग्य वर न मिल सका. अंत में एक वृद्ध वर-दक्षिणा के बिना विवाह के लिए तैयार हुआ. इस प्रस्ताव के कारण उस उपवर कन्या ने आत्महत्या कर ली. पूर्व जन्म के ऐसे पाप कर्मों के कारण वह क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति अत्यंत दीन-हीन अवस्था में श्रीपाद प्रभु के पास आया और उसने अत्यंत करुणापूर्ण वाणी से प्रभु से प्रार्थना की कि उसे इस दुर्धर व्याधि से मुक्त करें. दयावन्त श्रीपाद प्रभु ने उसे पञ्चपहाड़ में स्थित गोशाला में सोने के लिए कहा. वहाँ मच्छर प्रचुर मात्रा में थे. प्यास लगने पर पीने के लिए पानी भी नहीं था. उस रात को उसने सपने में देखा कि एक राक्षस उसका गला दबाकर उसके प्राण ले रहा है. वह घबरा कर उठ बैठा. इधर-उधर देखने लगा और यह विश्वास करके कि वह स्वप्न ही था, वह पुनः सो गया. उसने फिर से एक सपना देखा. उसके सीने पर एक बड़ा पत्थर रखा था और उस पत्थर पर एक बलवान पहलवान बैठा था. इन दोनों स्वप्नों के कारण उसके कर्म फल का परिष्कार हो गया और वह अपनी क्षय रोग की एवँ अन्य व्याधियों से मुक्त होकर स्वस्थ्य हो गया. अनेक वर्षों से क्षय रोग से पीड़ित ऐसे व्यक्ति को श्रीपाद प्रभु ने सपने में दंड देकर कर्म विमुक्त कर दिया.

 

श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु की जय जयकार हो

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