।। श्रीपाद
राजं शरणं प्रपद्ये।।
अध्याय
– ५३
श्रीपाद
श्रीवल्लभ चरित्रामृत का पीठिकापुरम् क्षेत्र में पहुँचने का विधान
ग्रन्थ
की विशेषता
मेरे द्वारा लिखित “श्रीपाद
श्रीवल्लभ चरित्रामृत “ ग्रन्थ कुछ दिनों तक श्रीपाद प्रभु के मामा के घर में था.
इसके बाद इस संस्कृत ग्रन्थ का तेलुगु भाषा में अनुवाद किया गया. तेलुगु भाषा में
अनुवाद होने के उपरांत मूल संस्कृत ग्रन्थ अदृश्य हो गया. गन्धर्वों ने उसे
श्रीपाद प्रभु के जन्म स्थान पर ले जाकर ज़मीन के नीचे गहरे गाड़ कर रख दिया. उस
ग्रन्थ का सिद्धयोग द्वारा पठन हो रहा है. मेरे द्वारा रचित चरित्रामृत श्रीपाद
प्रभु की दिव्य चरण पादुकाओं के निकट रखकर मैंने उन्हें पढ़कर सुनाया. चरित्रामृत
को सुनने के लिए आए पाँच भक्त उसका श्रवण करके धन्य हो गए.
मैं पंडित नहीं हूँ, अतः किस अध्याय को पढ़ने से क्या फल मिलेगा, यह कह नहीं सकता. श्री बापन्नाचार्युलु की तैंतीसवी
पीढी के कालखंड में इस ग्रन्थ की तेलुगु प्रति उदित होही. जो भाग्यवान व्यक्ति इस
ग्रन्थ को खोज निकालें, वे श्रीपाद प्रभु के जन्म स्थान पर जाकर वहाँ महासंस्थान के पवित्र परिसर
में ग्रन्थ का पठन करके उसे श्रीपाद प्रभु के चरणों में अर्पित करें. इस ग्रन्थ का
पठन होते समय पठन करने वाले भाग्यवान भक्त को गाणगापुर क्षेत्र से भेजा हुआ प्रसाद
प्राप्त होगा. वह प्रसाद लाकर देने वाला व्यक्ति बापन्नाचार्युलु की तैंतीसवी पीढी
से होगा. यह तेजोमय स्वरूप में दर्शन देने वाले श्रीपाद प्रभु का दिव्य वचन है.
।। श्रीपाद
श्रीवल्लभ प्रभु की जय जयकार हो।।
।। हरिः ॐ तत्सत्।।
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