।। श्रीपाद राजं शरणं प्रपद्ये।।
अध्याय 33
रमणी एवँ नरसिंह रायुडु का विवाह स्वयँ श्रीपाद प्रभु ने
करवाया
हम दोनों ने श्रीपाद प्रभु से आज्ञा ली. वे बोले, “बेटा, तुम लोग यहाँ से निकलकर श्री पीठिकापुरम् जाओ.
मेरे मंगल आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं. श्री महागुरु की आज्ञा शिरासावंद्य मानकर हम
दोनों कृष्णा नदी पार करके दूसरे किनारे पर पहुंचे. वहाँ एक पत्थर पर श्रीपाद
प्रभु की चरण मुद्रा देखी. श्रीपाद प्रभु नित्य उसी पत्थर पर खड़े होकर सूर्य
नमस्कार किया करते थे. श्री चरणों के चरण कमल वहाँ देखकर हमें आश्चर्य हुआ एवँ
अतीव आनंद हुआ.
हम पंचदेवपहाड़ ग्राम पहुंचे. वहाँ अल्पाहार करके आगे की यात्रा पर निकल पड़े.
एक ज्वार के खेत से जब हम पगडंडी से गुज़र रहे थे तो उस खेत के मालिक ने हमारा
स्वागत किया. खाने के लिए मीठे फल और पीने के लिए मीठी छाछ दी. उस मालिक का नाम था
नरसिंह रायुडु. उसने खेत में ही अपना घर बनाया था और वहीं वह रहता था. उसने विनती
की कि हम एक दिन उसके यहाँ विश्राम करें, उसका आदरातिथ्य स्वीकार करें और फिर आगे
जाएँ. उसकी बात सुनते हुए हम एक दिन वहाँ रुक गए. उसने श्रीचरणों के वैभव के बारे
में बताना आरम्भ किया.
वह बोला, “बंधू, मेरा नाम नरसिंह रायुडु है. मैं बचपन में
अत्यंत दुर्बल तथा डरपोक था. मेरे माता-पिता की मेरे बचपन में ही मृत्यु हो गई थी.
मैं अपने मामा की छत्रछाया में बड़ा हुआ. मेरी मामी बड़े क्रोधी स्वभाव की थीं. मुझे
घर में खूब काम करना पड़ता था, साथ ही खेत में भी काम करना पड़ता.”
“मेरे मामा की एक पुत्री थी. उसका नाम था रमणी. पूरे गाँव में, हमारे कुलस्थों में, सभी लड़कियों से बढकर सुन्दर थी रमणी. वह सद्गुण संपन्न थी, ईश्वर के प्रति
उसके ह्रदय में भक्ति थी. वह श्रीकृष्ण भगवान को अपना आराध्य देव मानती थी. मेरी
मामी मुझे बासा अन्न खाने को देती, यह बात उसे सहन न
होती थी. मेरा आहार बहुत कम था. घर में किसी के भी मन में मेरे प्रति आदर की भावना
न थी, मगर काम का तो मेरे सामने सदा पहाड़ ही खडा रहता था. रमणी छुपा छुपाकर मुझे
ताज़ा अन्न एवँ मीठे फल लाकर दिया करती. कभी कभी मामी की नज़र में यदि यह बात आ जाती, तो मेरे साथ साथ उसे भी दंड मिलता. मेरे मामा
स्वभाव से भले थे, परन्तु पत्नी के सामने उनकी एक न चलती थी. वे
उसके सम्मुख असमर्थ ही थे. कभी कभी मामी हमारे कुल के मुझसे अधिक बलवान लड़कों को बुलाकर
मुझे मारने के लिए कहती थी. मेरी दुर्बलता के कारण मैं उनका विरोध न कर पाता. इससे
मेरा डर तथा दुर्बलता और बढ़ती जाती. मुझसे छोटे लड़कों के सामने भी मैं असमर्थ एवँ
असहाय प्रतीत होता था. वे मेरा मज़ाक उड़ाते. इस प्रकार का कष्टमय जीवन मैं जी रहा
था.
हमारी रमणी बहुत सुन्दर थी, इस कारण गाँव के
हमारे कुल के सभी युवकों की उससे शादी करने की इच्छा थी, परन्तु रमणी को मुझसे ही शादी करनी थी. मेरे
पास धन तो नाम मात्र को नहीं था, ऊपर से दुर्बल शरीर
एवँ डरपोक स्वभाव होने के कारण यह कैसे संभव हो पायेगा यह समस्या थी. हमारे मामा
बहुत धनवान थे, स्वभाव से बहुत अच्छे थे, परन्तु उन्हें पैसों की बड़ी लालसा थी. मामी
स्वभाव से तो दुष्ट थी, परन्तु यदि उसकी
तारीफ की जाती तो वह फंस जाती थी.
हमारी रमणी रोज़ श्रीकृष्ण भगवान से प्रार्थना करती थी कि मैं ही उसका पति
बनूँ. एक बार हमारे गाँव में एक ढोंगी
साधू आया. सारे गाँव में यह बात फ़ैल गई कि वह काली माता का भक्त है एवँ उसे भूत, भविष्य एवँ वर्तमान का ज्ञान है. उसे
भूत-भविष्य जानने की विद्या अवगत थी. गाँव में उसका बताया हुआ भविष्य शत-प्रतिशत सच
हुआ था. हमारी मामी पर उसने अपना माया जाल फेंका और उससे कहा कि घर में काली पूजा
का आयोजन करे. पूरी तैयारी कर ली. उसने मामी से कहा कि रमणी की पूजा वाली
श्रीकृष्ण की मूर्ती घर से बाहर फेंक दे. मामी मान गई. रमणी तड़पने लगी, विलाप करने लगी, मगर मामी पर कोई असर न हुआ. उस ढोंगी साधू ने पूजा आरम्भ की. अनेक मुर्गियों
की बलि दी. उन मुर्गियों के खून से पूजाघर की और देखा नहीं जाता था. घर में मनुष्य
का कपाल एवँ श्मशान-साधना की सामग्री भी आ गई. वह पूजा संपूर्ण होने पर इस घर में
किसी स्थान पर अपार धन लाभ होगा, परिवार ऐश्वर्य संपन्न हो जाएगा, ऐसा कहकर उस ढोंगी साधू ने सबका विश्वास प्राप्त कर लिया. उस साधू को
वशीकरण विद्या का ज्ञान था. उस विद्या की सहायता से उसने रमणी का शील हरण करने की
योजना बनाई. इस उद्देश्य से वह घर में चित्र-विचित्र प्रकार की पूजाएँ कर रहा था, फलस्वरूप रमणी की प्रकृति क्षीण होती गई. उसके
बर्ताव में अंतर आ गया. आधी रात को उठकर वह रक्तपान करने लगी. मुर्गियां और बकरे
मार-मार कर उसे वह खून पिलाया जा रहा था. उसके शरीर में कालिका माता का संचार हो
गया है, इसीलिये वह रक्तपान करती है; खून के बिना माता शांत नहीं होती और माता की
कृपा न होने पर अपार संपत्ति का लाभ नहीं होगा. उसके शरीर से कालिका माता निकल
जाने पर ही यह कन्या पूर्ववत् होगी ऐसा उस साधू ने कहा.
घर में वीभत्स का तांडव चल रहा था. अचानक रसोई घर से बर्तन बाहर निकल-निकल
कर कुएँ में गिरते. आधी रात को मानव कंकालों जैसी आकृतियाँ घर में दिखाई देतीं और
डरावनी आवाजें आतीं. हमारा घर श्मशान भूमि जैसा ही दिखाई दे रहा था. उस साधू को
निकाल बाहर करने का धैर्य हमारे मामा में नहीं था. थोड़े दिनों तक यह कष्ट सहन करने
से अथाह संपत्ति प्राप्त होगी इस आशा में मामी दिन बिता रही थी. परिस्थितियाँ बड़ी
असमंजस की एवँ चिंताजनक थीं.
एक बार रात को अचानक वह साधू रमणी के निकट गया, वह वशीकरण के प्रभाव में थी. वह उसकी आज्ञा का पालन करेगी और उसकी इच्छा
पूर्ण करेगी इस विचार से वह साधु उसके बिलकुल समीप पहुँचा. रमणी जोर से चिल्लाई और
पास ही पडी हुई एक वज़नदार चीज़ उसने उस साधु के सिर पर दे मारी. साधु को उससे ऐसे
व्यवहार की बिलकुल आशा न थी. वशीकरण के पश्चात भी व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार
कैसे कर सकता है, साधु यह बात समझ न पाया.
श्रीपाद प्रभु का
आर्त परायण तत्व
दूसरे दिन सुबह एक गरीब
ब्राह्मण याचक हमारे द्वार पर भिक्षा के लिए आया. रमणी ने उससे कहा कि हमारे घर
में भूत प्रेतों का वास्तव्य है, चाहें तो उन्हें ही आप भिक्षा स्वरूप स्वीकार करें ब्राह्मण ने इनकार कर
दिया.
उस ब्राह्मण का मुख कमल
अत्यंत शांत एवँ सोज्ज्वल था. हमारे मामा
बाहर आये और बोले, “हमारे घर की परिस्थिति अत्यंत चिंताजनक है, इन परिस्थितियों की कारक दुष्ट शक्तियों को आप
दान स्वरूप स्वीकार करें,” तभी मामी भी बाहर आई और बोली, “हमारे घर में आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है.
हमारे घर का दारिद्र्य भिक्षा स्वरूप स्वीकार करें.” मैं भी तब वहीं था. मैंने कहा, “स्वामी, मेरे पास वंश पारंपरिक एक चांदी का ताबीज़ है.
यदि आपकी सम्मति हो तो वह ताबीज़ मैं आपको अर्पण करता हूँ, इसे भिक्षा स्वरूप
स्वीकार करें.”
ब्राह्मण ने ताबीज़
स्वीकार कर लिया. तभी वह ढोंगी साधू श्मशान से मानव कपाल लेकर आया. वह अट्टहास
करते हुए बोला, “अरे भिक्षुक ब्राह्मण! तू मना करेगा तब भी मैं
इस मानव कपाल को तुझे भिक्षा में दूँगा. इसका तू स्वीकार कर!” उस ब्राह्मण ने इस
भिक्षा को अस्वीकार कर दिया.
तभी हमारे घर में एक
दिव्य प्रकाश दिखाई दिया और वह भिक्षुक ब्राह्मण अदृश्य हो गया. उस दिव्य प्रकाश
के कारण उस ढोंगी साधू के पूरे शरीर में भयानक दाह होने लगा. उस प्रकाश की किरणें
रमणी के शरीर पर पडीं और वह एकदम पूर्ववत् हो गई. मामी को लकवा मार गया और वह भूमि
पर गिर पडी. मामा भय से थरथर कांपने लगे. मगर मुझमें अपार धैर्य का संचार हो गया.
मुझमें शक्ति का प्रवेश होकर मैं अत्यंत बलवान हो गया. उस मान्त्रिक के मुँह से
खून की धाराएं बहने लगीं और उसके भीतर की सभी शक्तियां नष्ट हो गईं.
वह दिव्य तेजोमय प्रकाश
एक मानव के रूप में परिवर्तित हो गया. वे आर्तत्राण परायण, समस्त देवी-देवता
स्वरूपी, आदि, मध्य तथा अंत से रहित दिव्य, भव्य तेजोमय स्वरूप वाले श्रीपाद श्रीवल्लभ
प्रभु ही थे.
श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु
बोले, “वास्तव में देखा जाए तो काली माता मानव के भीतर छिपे हुए काम क्रोधादि
राक्षसों का संहार करती है. वह कभी भी मुर्गियां, बकरे आदि नहीं मांगती. इस प्राणमय जगत में राक्षस शक्ति ही कालिका रूप
धारण करके विभिन्न प्रकार के प्राणियों की बलि मांगती है. वास्तविक काली माता के
लक्षण हैं प्रेम, शान्ति, दया आदि.”
“इस प्राणमय जगत की
राक्षसी शक्तियां, आसुरी शक्तियां, भूत-प्रेतादि शक्तियां ऐसा प्रचार करती हैं, कि वे देवता हैं, और क्षुद्र विद्या का प्रदर्शन करती हैं. क्षुद्र मान्त्रिक इनकी उपासना
करके लोगों में आतंक फैलाते हैं. याद रखो कि विभिन्न प्रेतात्माएं देवताओं के शरीर
तो धारण कर सकती हैं, मगर उन देवताओं की दैवी शक्तियां उनके पास नहीं होतीं.”
श्रीपाद प्रभु आगे बोले, “मैंने यह वचन दिया है कि
मेरा अवतार धर्म रक्षणार्थ होता है. उसके अनुसार धर्म संस्थापनार्थ ही श्रीपाद
श्रीवल्लभ प्रभु का अवतार हुआ है. यह अवतार दया, शान्ति, प्रेम, करुणा जैसी अनंत शक्तियों का मिश्रण है.”
हमारे घर की शुद्धि करके
उस ढोंगी साधु को भगा दिया गया. श्रीपाद प्रभु के अनुग्रह से मामी भी ठीक हो गई.
श्रीपाद प्रभु ने हमें
आशीर्वाद देकर अपने हाथों से मेरा और रमणी का विवाह करवाया. उस समय वे मुश्किल से
बारह वर्ष के थे. श्रीपाद प्रभु का वास्तव्य तब पीठिकापुरम् में ही था, मगर
मायारूप में वे पंचदेव पहाड़ नामक ग्राम में भी रहते थे. उन्होंने हमें ये अक्षता
(चावल) दिए थे और कहा था कि शंकर भट्ट एवँ धर्मगुप्त नाम के दो व्यक्ति आएँगे, उन्हें इसमें से धोडी सी अक्षता दे दूं. अहा!
कितना लीलामय स्वरूप है श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु का!”
।। श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु की जय जयकार हो ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें