।। श्रीपाद राजं शरणं प्रपद्ये ।।
अध्याय – ३०
श्रीपाद श्रीवल्लभ महासंस्थान का निर्माण होगा ऐसा श्रीपाद प्रभु ने ही
बताया
नाथ सम्प्रदाय के अनुसार जीवात्मा चौंसठ शाबर तंत्र का उपयोग करके परमेश्वर
से तादात्म्य प्राप्त करता है. नाथ सम्प्रदाय के आदिगुरू श्री दत्तात्रेय भगवान ही
हैं. हमारे सम्मुख विराजमान श्रीपाद श्रीवल्लभ साक्षात श्री दत्तात्रेय ही हैं.
शतरंज की बिसात पर चौंसठ खाने होते हैं. श्री महाविष्णु श्री महालक्ष्मी के साथ
वैकुण्ठ लोक में शतरंज की बाज़ी खेलते हैं, इसका गूढार्थ यह हुआ कि चौंसठ योनियों में स्थित विभिन्न जीवात्माओं के जीवन
कलापों के कर्मफल तथा उनकी परिणामी क्रियाओं का अवलोकन करते हुए, उनके कर्मफलों के
आधार पर वे उन पर अनुग्रह करते हैं.
दिव्य मानव होने के लिए आवश्यक योग्यता
“मानव के आध्यात्मिक अधिकार पर उनकी उन्नति की गति निर्भर करती है. प्रत्येक
जीवात्मा दिव्यात्मा होने की अभिलाषा रखता है. इस मार्ग से चलने के लिए योगपद्धति,
मन्त्र, जप, याज्ञयागादी कर्म, धर्मं कार्यों को संपन्न करना इत्यादि विधियों
का अवलंबन करके शरीर की आत्म ज्योति को प्रकाशमय करें. इस प्रकाश पर नाडी-शुद्धि
अवलंबित रहती है. नाडी-शुद्धि के स्तर के अनुरूप मानव को विभिन्न स्तर की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है. शक्ति विशेष का विकास होने पर साधकों
द्वारा किये गए धार्मिक कर्मों के अनुसार उन्हें दैवानुग्रह की प्राप्ति होती है.”
श्रीपाद प्रभु आगे बोले, “शंकर भट्ट, भविष्य में मेरे महासंस्थान का श्री पीठिकापुरम्
में मेरे जन्मस्थल पर ही निर्माण होगा. श्री पीठिकापुरम्, श्यामालाम्बापुर एवँ वायसपुर
अग्रहार ये तीनों स्थान मिलकर एक महानगर बनायेंगे. मेरे दर्शनों के लिए मेरे
देवस्थान पर भक्तों की लम्बी-लम्बी, चीटियों के समान
कतारें लगेंगी. कलियुग में अनेक आश्चर्यजनक घटनाएं होंगी. वशिष्ठ महामुनि का अंश
लेकर जन्मा हुआ एक साधक श्रीपाद श्रीवल्लभ संस्थान का पुजारी नियुक्त होगा. उसके
साथ मैं कितनी दिव्य लीलाएँ करूंगा, उनका कोई अंत ही
नहीं. प्रतिक्षण दिव्य लीला एवँ दिव्य विनोद चलते ही रहेंगे.”
इतना कहकर श्रीपाद प्रभु मंद-मंद मुस्कुराए. उसे देखने के लिए सहस्त्रावधि
जन्म भी कम ही हैं.
।। श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु की जय जयकार हो।।
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