।। श्रीपाद
राजं शरणं प्रपद्ये।।
अध्याय
– २६
कलियुग के लक्षण
हम सुबह-सुबह नदी पार
करके श्रीपाद प्रभु के दर्शन हेतु कुरुगड्डी पहुँचे. धर्मगुप्त को श्रीपाद प्रभु के मुख से कलियुग के प्रादुर्भाव की विशेषताएं
जानने की तीव्र इच्छा थी. आज श्रीपाद प्रभु अत्यंत प्रसन्न थे. उनकी कारुण्य वर्षा
करने वाली अमृत दृष्टी सभी साधकों को एक विशेष आध्यात्मिक आनंद प्रदान कर रही थी. प्रभु
के चरण कमलों का स्पर्श करके हम धन्य हो गए. धर्मगुप्त ने श्रीपाद प्रभु से नम्र
निवेदन किया कि कलियुग के प्रादुर्भाव की विशेषता का वर्णन करें. श्रीपाद प्रभु
बोले, “साधकों, काल परमात्मा का विराट
स्वरूप है. सूर्य को ‘कालात्मक’ भी कहते हैं. धनिष्ठा नक्षत्र से आरम्भ की हुई
श्रवण नक्षत्र की सूर्य के चारों ओर की परिक्रमा के वापस धनिष्ठा नक्षत्र तक पहुँचने
की समयावधि को ब्रह्म कल्प कहते हैं. ब्रह्म कल्प के एक भाग को सृष्टि कल्प कहते
हैं एवँ शेष भाग को प्रलय कल्प कहते हैं. पितृ देवताओं से संबंधित काल गणना में
आधा भाग शुक्ल पक्ष तथा आधा भाग कृष्ण पक्ष कहलाता है. संवत्सर पुरुष के छः महीने
उत्तरायण तथा शेष छः महीने दक्षिणायन कहलाते हैं. योगी जन संपूर्ण काल चक्र के
दर्शन अपने शरीर में करते हैं. इस रहस्य विद्या को तारक राज विद्या कहते हैं. तारक
राज योग में शरीर को ही ब्रह्माण्ड माना जाता है. सभी लोग इसी में समाविष्ट हैं.
मनुष्य के शिरस्थान को ब्रह्म लोक कहते हैं. इस शिरस्थान में आचार-विचार रहते हैं.
नाभि में विष्णु लोक होता है. ह्रदय में रूद्र लोक होता है. पितृ जन अपने वीर्य कणों
में जन्यु देवता स्वरूप में वास करते हैं. जन्यु देवताओं का कार्य यह है कि मानव
के विगत जन्म में किये गए कर्म का फल अगले जन्म में प्रदान करें. परन्तु विगत जन्म
के फल को एक क्रम पद्धति से प्रदान करने के लिए काल की अत्यंत आवश्यकता होती है.
कलियुग का लक्षण
पितृ देवता से तात्पर्य
दिवंगत पूर्वजों से नहीं है. स्वर्गवासी हो चुके अपने माता-पिता, दादा-दादी के नाम से किये गए श्राद्ध का फल
स्वीकार करके उन्हें उत्तम गति प्रदान करने वाले जन्यु देवता ही हैं. ये जन्यु
देवता जन्म मृत्यु से परे हैं. योगीजन अपने शरीर में ही छः ऋतुओं के दर्शन करते
हैं. एक वर्ष में बारह पूर्णिमा तथा बारह अमावस्या होती हैं. ये चौबीस पर्व
गायत्री के चतुर्विंशति छंद हैं. कुछ लोग काल स्वरूपी श्री विष्णु भगवान को
संवत्सर पुरुष मानकर उनकी उपासना करते हैं. इस विद्या को द्वादशाक्षरी विद्या कहते
हैं. प्रत्येक मास के एक अक्षर के हिसाब से बारह महीनों के बारह अक्षर मिलकर एक
मन्त्र बनाते हैं.
नदियों में भयानक बाढ़ से मनुष्यों की, पशुओं की, संपत्ति की अपार हानि होना, भूमि का प्रकम्पित होना अर्थात् भूकंप आना, सूर्य चन्द्र की गति बदलना, दिन में अन्धेरा होकर सूरज का दिखाई न देना, आकाश में ‘धूमकेतु’ का प्रकट होना – ये सभी कलियुग के लक्षण हैं. द्वापर युग के अंतिम खंड में
पश्चिमी सागर के एक द्वीप पर कलियुग के अधिपति, कलिपुरुष, ने घोर तपस्या की थी. ये
सारे विषय वेदव्यास ऋषि द्वारा रचित भविष्य पुराण में प्राप्त होते हैं.
म्लेच्छ जाति का आविर्भाव
जिधर देखो उधर वेदमंत्रों के उच्चार, यज्ञ-यागादी, तपस्या आदि का जोर
था. इस कारण कलिपुरुष अत्यंत दुखी था. उसने ईश्वर से प्रार्थना की, “हे प्रभो, पृथ्वी पर चारों और यज्ञ, याग, धार्मिक आचरण, नीतिमत्ता का ही प्राबल्य है. ऐसी स्थिति में
मैं अपने कलियुग का प्रभाव लोगों के बीच कैसे फैलाऊँ? आपकी आज्ञानुसार मुझे अपने युग-धर्म को चारों और व्याप्त करना है, परन्तु वर्त्तमान परिस्थिति में मुझे यह असंभव
प्रतीत होता है.”
कलिपुरुष के वचन सुनकर जगत्प्रभु ने उसे पश्चिमी सागर में स्थित एक द्वीप
दिखाया. म्लेच्छ जाति के मूल पुरुष आदम तथा स्त्री हव्यावती को जगत्प्रभु ने
कलिपुरुष को दिखाया. उन स्त्री-पुरुष के विहार के लिए एक अत्यंत रमणीय उद्यान का
निर्माण किया. वास्तव में वे स्त्री-पुरुष बहन-भाई थे. परन्तु कलिपुरुष ने सर्प
रूप में उनके भीतर प्रवेश करके काम भावना उत्पन्न कर दी, तथा अधर्मी संतान उत्पन्न
करने के लिए उन्हें प्रेरित किया. उन दोनों के इस प्रकार से पतित हो जाने पर उनके
भीतर की दिव्य शक्ति अदृश्य हो गई. कालान्तर में इस युगल से कलि धर्म की मूल
म्लेच्छ जाति का आविर्भाव हुआ.
द्वापर युग के अंत में अर्थात दो हज़ार आठ सौ वर्षों के बाद म्लेच्छ देश में
म्लेच्छ जाति की संतति की अभिवृद्धि होगी. ऐसा वर्णन भविष्य-पुराण के प्रत्येक
सर्ग-पर्व में किया गया है. नीलांचल पर्वत के निकट आदम और हव्यावती ने अपने पाप के
फल का अनुभव करके आर्य धर्म को दूषित करने वाली, अभक्ष्य भक्षण करने वाली, दुराचारी संतति की वृद्धि की.
श्रीपाद प्रभु ने आगे कहा, “मैं कल्कि अवतार
धारण करके करोड़ों अधर्मियों तथा दुराचारियों का नाश करके पुनः सत् युग की स्थापना करने वाला हूँ. यह काफी दूर के
भविष्य में मेरा कार्यक्रम है.”
।। श्रीपाद श्रीवल्लभ
प्रभु की जय जयकार हो।।
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