मंगलवार, 5 जुलाई 2022

अध्याय - २९

 

।। श्रीपाद राजं शरणं प्रपद्ये ।।

 

अध्याय - २९

श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु का दिव्य उपदेश

हमने कुरुगड्डी में श्रीपाद प्रभु के दर्शन किए और उनकी आज्ञा से उनके समीप बैठ गए। तब प्रभु बोले, “जो साधक अनन्य भाव से मेरी शरण में आते हैं उनकी मैं सदैव रक्षा करता हूँ. यह देश काल मेरे हाथ में एक गेंद के समान है. कहीं भी घटित हो रही, भूतकाल में घटित हो चुकी तथा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को मैं बदल सकता हूँ. मैं देश और काल का शासक ही हूँ. तुम्हारे चैतन्य के संस्कारों की श्रेणी के अनुरूप ही तुम्हें मेरे बारे में ज्ञान प्राप्त होगा. सभी धर्मों का परित्याग करके तुम्हारे अंतर्मन में अन्तर्यामी रूप में स्थित, ऐसे मेरी शरण में अनन्य भाव से आने पर मेरे आदेशानुसार कर्म का पालन करने पर मैं तुम्हारा सब भार वहां करके तुम्हें जीवन्मुक्त करूंगा. केवल अपने शब्दों से ही मैं सृष्टि पर शासन करता हूँ. इसलिए मैं ही सरस्वती रूप में प्रसिद्ध होऊँगा. कलियुग का मानव हिरण्यकश्यपू के समान होगा. उनकी समस्याएँ, भाव एवँ आचार-विचार अत्यंत कठोर स्वरूप के होंगे. उन्हें प्रकृति-विज्ञान से संबंधित अनेक संशोधनों में यश प्राप्त होगा. परन्तु मुझे प्रहलाद जैसे निष्पाप, निरपराध भक्तों के संरक्षण के लिए नरसिंह का अवतार धारण करना होगा. इस कारण से मैं “नृसिंह सरस्वती” इस नाम-रूप से एक और दिव्य अवतार धारण करके गंधर्वपुर नगर में प्रसिद्धी को प्राप्त करूंगा.” इतना कहकर श्रीपाद प्रभु ध्यानस्थ हो गए और उन्होंने हमें भी ध्यान मुद्रा में बैठने को कहा.

 

।। श्रीपाद श्रीवल्लभ प्रभु की जय जयकार हो।।


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